Ardhnarishvar Avtar Ki Katha

Ardhnarishvar Avtar Ki Katha-अर्धनारीश्वर अवतार की कथा

शीश गंग अर्धंग पार्वती

 नंदी भृंगी नृत्य करत है” 

शिव स्तुति में आये इस भृंगी नाम को आप सब ने जरुर ही सुना होगा। पौराणिक कथाओं के अनुसार ये एक ऋषि थे जो महादेव के परम भक्त थे किन्तु इनकी भक्ति कुछ ज्यादा ही कट्टर किस्म की थी। कट्टर से तात्पर्य है कि ये भगवान शिव की तो आराधना करते थे किन्तु बाकि भक्तो की भांति माता पार्वती को नहीं पूजते थे।

उनकी भक्ति पवित्र और अदम्य थी लेकिन वो माता पार्वती जी को हमेशा ही शिव से अलग समझते थे या फिर ऐसा भी कह सकते है कि वो माता को कुछ समझते ही नही थे। वैसे ये कोई उनका घमंड नही अपितु शिव और केवल शिव में आसक्ति थी जिसमे उन्हें शिव के आलावा कुछ और नजर ही नही आता था। एक बार तो ऐसा हुआ की वो कैलाश पर भगवान शिव की परिक्रमा करने गए लेकिन वो पार्वती की परिक्रमा नही करना चाहते थे।

ऋषि के इस कृत्य पर माता पार्वती ने ऐतराज प्रकट किया और कहा कि हम दो जिस्म एक जान है तुम ऐसा नही कर सकते। पर शिव भक्ति की कट्टरता देखिये भृंगी ऋषि ने पार्वती जी को अनसुना कर दिया और भगवान शिव की परिक्रमा लगाने बढे। किन्तु ऐसा देखकर माता पार्वती शिव से सट कर बैठ गई। इस किस्से में और नया मोड़ तब आता है जब भृंगी ने सर्प का रूप धरा और दोनों के बीच से होते हुए शिव की परिक्रमा देनी चाही।

तब भगवान शिव ने माता पार्वती का साथ दिया और संसार में महादेव के अर्धनारीश्वर रूप का जन्म हुआ। अब भृंगी ऋषि क्या करते किन्तु गुस्से में आकर उन्होंने चूहे का रूप धारण किया और शिव और पार्वती को बीच से कुतरने लगे।

ऋषि के इस कृत्य पर आदिशक्ति को क्रोध आया और उन्होंने भृंगी ऋषि को श्राप दिया कि जो शरीर तुम्हे अपनी माँ से मिला है वो तत्काल प्रभाव से तुम्हारी देह छोड़ देगा।

हमारी तंत्र साधना कहती है कि मनुष्य को अपने शरीर में हड्डिया और मांसपेशिया पिता की देन होती है जबकि खून और मांस माता की देन होते है l

 श्राप के तुरंत प्रभाव से भृंगी ऋषि के शरीर से खून और मांस गिर गया। भृंगी निढाल होकर जमीन पर गिर पड़े और वो खड़े भी होने की भी क्षमता खो चुके थे l तब उन्हें अपनी भूल का एहसास हुआ और उन्होंने माँ पार्वती से अपनी भूल के लिए क्षमा मांगी।हालाँकि तब पार्वती ने द्रवित होकर अपना श्राप वापस लेना चाहा किन्तु अपराध बोध से भृंगी ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया l ऋषि को खड़ा रहने के लिए सहारे स्वरुप एक और (तीसरा) पैर प्रदान किया गया जिसके सहारे वो चल और खड़े हो सके तो भक्त भृंगी के कारण ऐसे हुआ था महादेव के अर्धनारीश्वर रूप का उदय।

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