Chandrayana Vrat Vidhi
चन्द्रमा की प्रसन्नता, चन्द्रलोक की प्राप्ति तथा पापों के नाश हेतु धर्म शास्त्रों में “चन्द्रायण व्रत’ करने का विधान है।
यह व्रत शरद पूर्णिमा से प्रारम्भ कर अगली पूर्णिमा तक रखना चाहिये । इसमें नित्यप्रति प्रात: काल स्नानादि करके तुलसी जी की पूजा करने का विधान है। इस समयावधि में अपने पूजा के स्थान पर एक अखण्ड दीपक जलाए रखना चाहिये । पेय पदार्थो जैसे गंगा जल, दूधा, ठण्डाई, फलों का रस आदि में तुलसी दल डालकर पीना चाहिये।
इसमें भोजन करने का विधान उसी प्रकार है जिस प्रकार चन्द्रमा की कला घटती या बढ़ती हैं। पहले दिन एक ग्रास, दूसरे दिन दो ग्रास, तीसरे दिन तीन ग्रास और इसी प्रकार पन्द्रहवें दिन पन्द्रह ग्रास भोजन के खाने चाहिये । फिर अगले पन्द्रह दिन में पुन: एक-एक ग्रास घटाते जाएं पूर्णिमा को ब्राह्मणों को परिवारजनों को भोजन कराकर आप स्वयं भोजन करें।
ब्राह्मणों को दक्षिण देकर विदा करें। इस प्रकार व्रत सम्पन्न करें। कुछ लोग इस व्रत के अन्तिम दिन हवन भी कराते हैं।