Holi Ki Katha-होली की कथा
बहुत पुरानी बात है- हिरण्यकश्यप नाम का एक राक्षस था। उसके पुत्र का नाम प्रहलाद था । प्रहलाद भगवान् का परम् भक्त था। परन्तु उसका पिता भगवान् को अपना शत्रु मानता था। वह अपने राज्य में किसी को भी ईश्वर का नाम लेने देता था। हिरण्यकश्यप ने घोर तपस्या से विपुल शक्ति का संग्रहकर देवताओं को कष्ट देना प्रारंम्भ किया ।
इंन्द्रासन पर भी अपना अधिकार कर लिया और आनंद पूर्वक जीवन व्यतीत करने लगा। विष्ण से विशेष विदेष था । सम्भवत: इसी की प्रतिक्रिया स्वरूप उसके पुत्र प्रहलाद में विष्णु के प्रति भक्ति की भावना जाग्रत हुई । एक बार हिरण्यकयप जब अपने पुत्र की शिक्षा के संबंध में जानने के लिए उसके गुरू के पास गया तप उस अपने पुत्र की भक्ति भावना का ज्ञान हुआ ।
उसने अपने पुत्र को ईश्वर का नाम लेने से मना किया परन्तु प्रहलाद को ईश्वर भजन से न रोक सका। इस पर क्रोधित होकर उसने प्रहलाद को सर्पो की कोठरी में बंद करवाया, पहाड़ से गिरवाया, हाथी के सामने डलवाया, परन्तु वह उस भक्त का कुछ ना बिगाड़ पाया । अंत में उसने आदेश दिया कि मेरी बहन होलिका को बुलाओ और उससे कहो कि वह प्रहलाद को अग्नि मे लेकर बैठ जाए, जिससे प्रहलाद जल कर मर जाएगा ।
होलिका को ऐसा वरदान मिला हुआ था कि अग्नि उसको जला नही सकती । अत: भाई की आज्ञा से वह भक्त प्रहलाद को गोद में लेकर आग के ऊपर बैठ गई, लेकिन प्रहलाद का बाल भी बाँका न हुआ और होलिका जल कर भस्म हो गई ।भगवान् की कृपा से अग्नि प्रहलाद के लिए बर्फ के सामान शीतल हो गई। तभी से होलिका जलाई जाती है। इधर जब हिरण्यकश्यप को पता लगा कि प्रहलाद तो बच गया और होलिका जलकर भस्म हो गई है
तो अंत में निराश हिरण्यकश्यप ने क्रोधित होकर प्रहलाद को एक लोहे के खम्भे से बांध दिया और पूछा – ‘बोल, कहां है तेरा भगवान्, जिसकी तू हमेशा स्ट लगाए रहता है ?’ प्रहलाद ने निडर होकर जवाब दिया- ‘सभी जगह तो है भगवान्।’ उसके पिता ने कहा- ‘क्या इस खम्भे में भी है ? यदि है तो मैं अभी तलवार से तुम्हारे दो टुकड़े करता हूं, देखू वह तुम्हे कैसे बचाता है ?
यह कहकर जैसे ही हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मारने के लिए तलवार उठाई भगवान् विष्णु ने खम्भे को फाड़ नृसिंह रूप में अवतरित हो अपनी जांघो पर बैठाकर हिरण्यकश्यप का नखों से पेट फाड़कर वध कर दिया और प्रहलाद के प्राणो की रक्षा की।