Shree Lakshmi Narayan Vrat Katha

Shree Lakshmi Narayan Vrat Katha

श्रीलक्ष्मीनारायण व्रत विधि:

प्रातःकाल सुबह जल्दी उठकर स्नान-ध्यान करें। पूजा स्थल की साफ-सफाई करें। पूजा के लिए एक चौकी पर आधा लाल और आधा पीला कपड़े का आसन बिछाएं। इसके बाद लाल कपड़े पर मां लक्ष्मी और पीले कपड़े पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। अब कुमकुम, हल्दी, अक्षत, रौली, चंदन, अष्टगंध से पूजन करें। सुगंधित पीले और लाल पुष्पों से बनी माला पहनाएं। मां लक्ष्मी को कमल का पुष्प अर्पित करें। सुहाग की समस्त सामग्री भेंट करें। मखाने की खीर और शुद्ध घी से बने मिष्ठान्न का नैवेद्य लगाएं। लक्ष्मीनारायण व्रत की कथा सुनें। 

व्रत कथा:

एक समय की बात है कांतिका नगर में धनेश्वर नाम का एक ब्राह्मण था उसकी कोई संतान न थी। वह ब्राह्मण दान मांगकर अपना गुजारा करता था। एक बार उस ब्राह्मण की पत्नी नगर में दान मांगने के लिए गई। लेकिन उसे नगर में उस दिन किसी ने भी दान नहीं दिया क्योंकि वह नि:संतान थी।

वहीं दान मांगने पर उस ब्राह्मण की पत्नी को एक व्यक्ति ने सलाह दी कि वो मां काली की आराधना करे। सलाह के अनुसार ब्राह्मण दंपत्ति ने ऐसा ही किया और सोलह दिनों तक मां काली की आराधना की। जिसके बाद मां काली स्वंय प्रकट हुईं मां ने उन्हें संतान प्राप्ति का वरदान दिया और कहा कि अपने सामर्थ्य के अनुसार तुम आटे की दीप हर पूर्णिमा को जलाना और हर पूर्णिमा को एक-एक दीपक बढ़ा देना।

देवी के कहे अनुसार ब्राह्मण ने एक आम के पेड़ से आम तोड़कर अपनी पत्नी को पूजा के लिए दे दिया। जिसके बाद उसकी पत्नी गर्भवती हो गई और दोनों के यहां एक सुंदर बालक का जन्म हुआ।

व्रत के लाभ

धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, अधिक मास के स्वामी भगवान विष्णु हैं और इस महीने उनकी आराधना करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। अधिकमास की पूर्णिमा का व्रत जीवन में समस्त प्रकार के सुख और सौभाग्य में वृद्धि करता है। यह व्रत यदि धन प्राप्ति की कामना से किया जाए तो यह अवश्य ही पूरा होता है। जबकि अविवाहित कन्या या युवक व्रत करें तो उन्हें योग्य जीवनसाथी प्राप्त होता है।

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