Vyatipaat Ki Katha
एक समय की बात है । चन्द्रमा को क्या सुझा कि उसने गुरू बृहस्पतीजी की पत्नी का हरण किया तो सूर्य ने कहा, ‘ऐसा कार्य तुम्हें नहीं करना चाहिए।’ चन्द्रमा ने सूर्य के सामने क्रोध से देखा तो सूर्य ने चन्द्रमा के सामने क्रोध दृष्टि से देखा । दोनों की दृष्टि आमने-सामने हुई इस टकराव से एक भयानक पुरुष उत्पन्न हुआ, ऐसा कि गाय को खा जाये । उसकी आठ, आंखे, अट्ठारह हाथ उसका मुंह खुला हुआ था जैसे कि संसरा को निगल लें। वह भयानक जोर से बोला- ‘मैं समस्त जगत को निगल जाऊंगा। इसलिए मैं उत्पन्न हुआ हूं।’
सूर्य चन्द्र ने कहा, ‘तुम हमारा कहना मानो, तुम हमारे दोनों को कोप दृष्टि से उत्पन्न हुए हो । अत: तुम्हारा नाम व्यतीपात होगा। तुम योगों के राजा होंगे। लेकिन तुम्हारा योग सत्ताईस दिन से होता है । तुम्हारे दिन में स्नान, दान, हवन, व्रत जो करेगा वह ज्यादा फलदाय होगा। तेरा पूजन करेगा वह धनवान, पौरूषवान, आयुष्वान होगा । स्त्री का सुहार रहेगा | व्यतिपात बोला, ‘मुझे भूख और क्रोध दोनों सताते हैं।’ सूर्य चन्द्र ने कहा, ‘लोग तुझे दान धर्म देंगे वह तुम्हारा भोजन है और जो धर्मदान नहीं करेगा उस पर क्रोध करना और दान धम्र देगा उस पर प्रसन्न होना।’
व्यतिपात यह सुनकर सूर्य–चन्द्र को नमस्कार करके चला गया। एक वर्ष में 13 व्यतिपात आते है । उस दिन उपवास रखना और फलआदि 13 गिनकर देना । साथ में दक्षिणा देना। एक समय राजा युधिष्ठर ने मार्कण्डेय मुनि को पूछा कि यम दंड से छुटने का उपाय बताओ। मुनि बोले कि व्यतिपात का व्रत करने से सब पाप छूट जाते है । ये व्रत किसने किया था ? मार्कण्डेय मुनि बोले – ‘पूर्वकाल में एक राजा ने व्रत किया था।
राजा ने उस व्रत का फल सक झूड को दिया | झुंड पूर्व जन्म में । एक कंजूस वैश्य था।
उसका मन पैसे में था । उस दिन व्यतिपात पर्व था । एक गरीब ब्राह्मण दान लेने आया । उसने कहा, ‘सेठ थोडा मुझे रसोई का सामान दो, मैं भूखा हूं।’ पर उसने उसको निकाल दिया, पर वह फिर आया, ‘आज पर्व का दिन है। थोड़ा कुछ दे दो, चौगुना होगा। भगवान तेरा भला करेगा | थोड़ा आटा दे दो।’ सेठ ने उसे धक्का मारकर निकाला तो ब्राह्मण ने क्रोधा करके श्राप दिया, तू भुंड होगा, जलता भूख मरता फिरेगा । जब कोई व्यतिपात का पुण्य देगा तब तुझे शान्ति मिलेगी और वह चला गया।
वैश्य की बुद्धि ठिकाने आई वह दौड़कर ब्राह्मण के पास गया व माफी मांगी। मेरा उद्धार कब होगा।
ब्राह्मण ने कहा – जब कोई पुण्यातमा व्यतिपात का पुण्य देगा तब तुम श्राप से मुक्त होंगे। थोड़े दिन बाद वैश्य मर गया । उसे भुण्ड की देह मिली । वह भयंकर जंगल में विचरने लगा। एक बार आग लगने से भुण्ड का मुंह, पेट आदि थोड़ा-थोड़ा जल गया। उससे वह दुःखी रहने लगा । एक बार राजा ने पूछा-तुम्हें इतना कष्ट क्यों हो रहा है।
तुमने पूर्व जन्म में पाप किया होगा । भुण्ड ने कहा- मैं पहले वैश्य था | व्यतिपात के दिन एक ब्राह्मण भिक्षा लेने हेतु आया परन्तु मैंने उसे धक्का देकर निकाल दिया । इस कारण उसे मुझे श्राप दिया कि तुम भुण्ड हो जाओगे।
वन में भूख से पीड़ित होकर फिरते रहोगे | यदि आपने व्यतिपात का व्रत किया है, तो उसका फल मुझे दे दो मेरा उद्धार हो जायेगा।
दयालु राजा ने हाथ में जल लेकर व्रत का संकल्प करके भुण्ड पर छिड़का तो वह भुण्ड तुरन्त पूर्व जन्म का वैश्य बनकर दिव्य रूप धारण करके स्वर्ग में गया।
जो व्यतिपात की कथा सुनेगा, स्नानदान, धर्म, उपवास करेगा, उसके ऊपर यमराज प्रसन्न होकर स्वर्ग का लाभ देगा।